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    शहीद ऑफिसर के पिता बोले-पोते को भी सेना में भेजूंगा:हमारे लिए वो बेटा था, लेकिन देश के लिए सिपाही- अब यही हमारी पहचान है

    1 day ago

    मेरे बेटे ने देश के लिए बलिदान दिया, कोई धोखा नहीं, पोते को भी भेजूंगा यह कहना है वायुसेना में वारंट ऑफिसर के पद पर कार्यरत रहे शहीद लुणाराम के पिता का। एक बूढ़े पिता का बेटा (51) शहीद हो गया है। उनकी आंखों में दर्द झलक रहा है, पर उनका सीना गर्व से भरा हुआ है। शहीद लुणाराम भारतीय वायुसेना में वारंट ऑफिसर के पद पर थे और 28 सालों से सेवा में थे। वह बेंगलुरु में स्पेशल ट्रेनिंग के बाद ही मंगलवार को चंडीगढ़ लौटे थे। बेंगलुरु से वापस आने के बाद उनकी अंतिम बार अपने पिता से बात हुई थी। लेकिन बुधवार की रात 9 बजे घर वालों के पास उनके निधन के समाचार आ गए। वहां ड्यूटी के दौरान हृदयगति रुकने से आकस्मिक निधन हो गया था। शुक्रवार को उनके पैतृक गांव दुगोली (नागौर) पहुंचते ही उनका अंतिम संस्कार सैन्य बैंड और सलामी के साथ किया गया। देश के लिए बेटे का बलिदान, पिता बोले कोई अफसोस नहीं बेटे के देश सेवा के दौरान शहीद होने की खबर मिलने के बाद, पिता भगवान राम ने 'भास्कर' से बात की। भगवान राम (85) अपने बेटे लुणाराम के शहीद होने की खबर के बाद भी उनके शब्दों में गर्व भरा दिखाई दिया। उन्होंने कहा- लुणाराम मेरा नहीं भारत माता का बेटा था, उसने अपना कर्तव्य निभाया। मैं अपने पोते को भी देश की सेवा के लिए जरूर भेजूंगा। उन्होंने आगे कहा कि उनका बेटा एक आदर्श बेटा था। वह हर दिन उन्हें फोन करके उनका हाल-चाल और तबीयत पूछता था, क्योंकि उनका अपने पिता के प्रति बहुत लगाव था। वह अपने बेटे मनीष को हमेशा अपने साथ रखता था। लुणाराम ने कुछ समय पहले ही कहा था कि जब वह कुछ समय बाद घर आएगा, तो अपने पिता के लिए सर्दी के कपड़े लेकर आएगा। उनकी बातों में वह हिम्मत और जज्बा महसूस होता है, जिसके लिए राजस्थान की मिट्टी को जाना जाता है। दिल रोता है… पर सर उठता है बुधवार को मंझले बेटे लुणाराम के निधन की खबर के बाद पिता भगवान राम की आंखों में दर्द भी था और गर्व भी। उन्होंने बताया कि उनके तीन बेटों में सबसे बड़ा बेटा सियाराम असमय पहले ही गुजर चुका था। अब दूसरा बेटा लुणाराम देश की सेवा करते हुए शहीद हो गया। पिता ने गहरी सांस लेकर कहा कि एक मां-बाप के लिए बेटा खोना आसान नहीं होता। पर जब वह देश के लिए जाता है, तो दिल रोता जरूर है… पर सर झुकता नहीं, बल्कि उठता है। उन्होंने आगे कहा- पहला बेटा पहले ही चला गया… और अब दूसरा बेटा देश के लिए चला गया। लेकिन फर्क इतना है कि इस बार दर्द के साथ गर्व भी है। मेरा बेटा अपनी मातृभूमि के लिए जीया और उसी के लिए चला गया। हमारे लिए वो सिर्फ बेटा था… लेकिन देश के लिए वो एक सिपाही था। वही पहचान अब हमारे लिए सबसे बड़ी है। ड्यूटी नॉन-टेक्निकल, लेकिन युद्ध तैयारियों से पीछे नहीं वायुसेना में वे नॉन-टेक्निकल ग्रुप में ऑफिशियल वर्क संभालते थे। लेकिन परिवार से कहते- अगर कभी देश को मोर्चे पर जाना पड़े, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा। अपनी वर्दी से बेहद लगाव था। 28 साल की सेवा, अनुशासन था पहचान शुरुआत से ही उनका सपना एयरफोर्स में जाने का था और जब मौका मिला, उन्होंने इसे सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि राष्ट्रधर्म माना। उनका अनुशासन इतना मजबूत था कि छुट्टी पर घर आए हों तब भी उनकी दिनचर्या घड़ी की सुई की तरह तय रहती थी। ड्यूटी के प्रति वे 100% समयनिष्ठ थे और रोज़ पिता को फोन कर हालचाल पूछना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। हजारों ग्रामीणों ने दी अंतिम विदाई, आसमान भारत माता के जयकारों से गूंजा शुक्रवार को शहीद लुणाराम को अंतिम विदाई देने के लिए केवल दुगोली ही नहीं आसपास के हजारों ग्रामीण नाम आंखों से श्रद्धांजलि देने पहुंचे थे। दुगोली गांव में वायुसेना के जवान जब विशेष वाहन से तिरंगे में लिपटे शहीद के शव लेकर गांव पहुंचे तो भारत माता के जयकारों से आसमान गूंज उठा था। वायुसेना के जवानों ने अंतिम सलामी देकर उनको श्रद्धांजलि दी। जिसके बाद शहीद के बेटे ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी। बचपन से था देश सेवा का सपना, दादा से मिली प्रेरणा शहीद लुणाराम में देश सेवा का जज्बा शुरू से था। गांव में बड़ा स्कूल नहीं था, इसलिए वे रोज़ाना 20 किलोमीटर दूर जायल पढ़ने जाते थे। यह देशभक्ति उन्हें विरासत में मिली थी, उनके दादा रुघाराम भारतीय सेना में थे, और उन्हीं की प्रेरणा से लुणाराम ने लक्ष्य बनाया- वर्दी ही पहनूंगा। नशे से दूर, सिद्धांतों पर अडिग वे किसी भी तरह के नशे के खिलाफ थे। घर में चाय तक नहीं बनती थी और नशा करने वाले रिश्तेदारों के साथ भी बैठते नहीं थे। गांव में उनकी पहचान एक बहुत ही शांत, शालीन और संतुलित व्यक्ति के रूप में थी, कभी किसी ने उन्हें गुस्से में देखा ही नहीं। पोस्टर, आंसू और अटूट जज्बा घर में लुणाराम का पोस्टर रखा है। उसके सामने बैठे परिजन रोते हैं, लेकिन आवाज में गर्व साफ सुनाई देता है। भगवान राम ने कहा- बेटे लुणाराम ने नागौर का नाम रोशन किया है। जब-जब लुणाराम का जिक्र आता है तो नागौर का नाम गर्व से लिया जाएगा। वह बच्चे को हमेशा NDA में जाने के लिए मोटिवेट करता था इकलौता बेटा मनीष अभी 12 क्लास में पढ़ रहा है और इसके बाद पिता के दिखाए रास्ते पर चलने की इच्छा रखता है। मैं उसके बेटे को भी उसके पिता जैसे बनाना चाहता हूं । इसीलिए राजस्थान में कहा जाता है "जननी जणे तो ऐड़ो जण के दाता के सूर", और शहीद लुणाराम के पिता ने बेटे के शहीद होने के बाद पोते को भी सेना में भेजने कि बात ने इस कथन को साबित कर दिया कि राजस्थान को धरती शूरवीरों की धरती है।
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